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Showing posts from November, 2018

लकड़ी की छत वाला किला (जैसलमेर का सोनार गढ़ )

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वैसे तो राजस्थान में बहुत से किले है  जो अपनी अद्भुत विशेषता लिए लिए हुए है , पर राजस्थान के पश्चिम में स्थिन जैसलमेर जो थार मरुस्थल  लिए प्रशिद्ध है | वह का सोनार गढ़ का किला अपनी विशिष्ट  भवियता लिए  हुए है | इस प्राचीन किले की छत लकड़ी की बनी  है जो आज भी सुरक्षित है |  चलिए मैं आपको इस किले का इतिहास बताता हूँ | यह किलाचंद्रवशी भाटी राजपूतो की राजधानी रहा है | इस किले का निर्माण भाटी रावल जैशल द्वारा  करवाया गया था | रावल जैशल ने इस  नीव 12 जुलाई 1155 ई. को रखी  थी | उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी सालिवालक द्वित्य उस इसका अधिकांश निर्माण करवाया था यह किला त्रिकुटाकर्ति का बना हुआ है जिसमे 99 बुर्ज है |  यह दुर्ग पीले पत्थरो से बना है और इस के निर्माण में चुने का प्रयोग नहीं किया है केवल पत्थर पर पत्थर रखकर ही चुना गया है | पीले पत्थरो से बना होने के कारण  जब सूरज की रोशनी इस पर पड़ती है तो सोने जैसा चंपकता है , इसी कारण इसे सोनार गढ़ कहा जाता है | इस किले की छत लकड़ी की बनी है |  इतना पुराना होने के बावजूद इसकी...
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एशिया की सबसे खतरनाक टॉप (जयबाण ) जयपुर के जयगढ़ में रखी यह तोप एशिया की सबसे भारी,बड़ी  खरनाक तोप है |    जयगढ़ में रखी इस टॉप का निर्माण सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1720 ई. करवाया था | इस तोप का प्रयोग केवल एक बार ही किया गया, आज तक किसी युद्ध में इसका प्रयोग नहीं हुआ | इससे दागा गया गोला 30 किमी  दूर जाकर गिरा और वहा एक तालाब बन गया जो आज भी है |  कहा जाता है जब इसे चलाया गया तो आस पास के छोटे बड़े गर गिर गए और कई गर्भवती महिलाओ के गर्भ गिर गए |  इसे एक पानी के टांके के पास रखा गया है, तोपची इसकी शोक  से बचने के लिए इस में कूद जाता था |  लेकिन गोला दागने के दौरान,तोपची और आठ अन्य सैनिकों , एक हाथी के साथ कथित तौर पर शॉकवेव्स के कारण मारे गए थे।  इस तोप की नली से लेकर अंतिम छोर की लंबाई 31 फीट 3 इंच है।  इसका वजन 50 टन से अधिक है |  परीक्षण के लिए इस तोप का गोला तैयार करने में 100 किलो गन पाउडर यानी बारूद की जरूरत पड़ी थी।  कहा जाता है कि सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपनी रियासत की सुरक्षा और उसके विस्तार के लिए कई...
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चूरू का किला (चाँदी के गोले दागने वाला किला ) इतिहास में युद्ध तो बहुत हुए, पर एक युद्ध ऐसा भी हुआ जिसमे आक्रान्तियो पर चाँदी के गोले  दागे गए |                            इस  निर्माण सन 1739 में ठाकुर कुशल सिंह जी ने  करवाया था |  इस किले पर 1814 में बीकानेर की सेना ने अंग्रेजी सेना के साथ मिलकर इस किले घेरा उस समय यहाँ के शासक शिव सिंह थे |  आक्रान्तियो ने किले पर गोले बरसाए और  जवाब में किले के अंदर से भी गोले बरसाए गए पर गोले खत्म होने पर किले के अंदर ही गोले बनाये गए, परन्तु गोले बनाने की धातु (सीसा ) खत्म हो गया | तो यह के नागरिक और धनियो ने अपने गारो से चाँदी लाकर शिव सिंह को समर्पित की और उस चाँदी  से  गोले बनाकर विरोधियो पर दागे |  चाँदी के गोले देख कर बीकानेर की सेना आश्चर्या चकित हो गयी और उन्होंने नागरिको की भावना का आदर करते   हुए किले से सेना हटा दी |  इस किले के बारे में एक कहावत है :- घोर ऊपर नीमड़ी, घो...
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हम्मीर रासो इस महान ग्रंथ की रचना जोधाराज ने की थी, जोधाराज गौड़ ब्राह्मण के पुत्र थे। इन्होंने नीवगढ़ वर्तमान नीमराणा अलवर के राजा चन्द्रभान चौहान के अनुरोध पर हम्मीर रासौ नामक प्रंबधकाव्य संवत 1875 में लिखा। रणथम्भौर के राजा हम्मीर देव चौहान के विजय अभियानों से चन्द्रभान काफी प्रभावित थे। इस प्रंबधकाव्य में रणथम्भौर के प्रसिद्ध शासक हम्मीर देव का चरित्र वीरगाथा काल की छप्पय पद्धति पर वर्णन किया गया है। इस में बताया गया है कि हम्मीर देव चौहान ने शरणागत की रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। राजा हम्मीर ने कई बार दिल्ली शासक जलालुद्दीन खिलजी को पराजित किया और अलाउद्दीन खिलजी जैसे शासक के दाँत खट्टे कर दिए। हम्मीर रासौ हम्मीर की वीरगाथाओं के साथ ओजस्वी भाषा में बहुत अच्छा महाकाव्य है। इस महाकाव्य में बताया गया है कि मुहम्मदशाह मंगोल दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी की बेगम से बेहद प्यार करता था और उसका धन लूटकर के वो वहां से भाग गया था, जिसे अलाउद्दीन खिलजी पकड़ना चाहता था। हम्मीर रासौ में अलाउद्दीन खिलजी की बेगम का नाम चिमना बताया गया है। संवत 1902 में चन्द्रशेखर वाजपेयी ने हम...
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