लकड़ी की छत वाला किला (जैसलमेर का सोनार गढ़ )

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वैसे तो राजस्थान में बहुत से किले है  जो अपनी अद्भुत विशेषता लिए लिए हुए है , पर राजस्थान के पश्चिम में स्थिन जैसलमेर जो थार मरुस्थल  लिए प्रशिद्ध है | वह का सोनार गढ़ का किला अपनी विशिष्ट  भवियता लिए  हुए है | इस प्राचीन किले की छत लकड़ी की बनी  है जो आज भी सुरक्षित है |  चलिए मैं आपको इस किले का इतिहास बताता हूँ | यह किलाचंद्रवशी भाटी राजपूतो की राजधानी रहा है | इस किले का निर्माण भाटी रावल जैशल द्वारा  करवाया गया था | रावल जैशल ने इस  नीव 12 जुलाई 1155 ई. को रखी  थी | उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी सालिवालक द्वित्य उस इसका अधिकांश निर्माण करवाया था यह किला त्रिकुटाकर्ति का बना हुआ है जिसमे 99 बुर्ज है |  यह दुर्ग पीले पत्थरो से बना है और इस के निर्माण में चुने का प्रयोग नहीं किया है केवल पत्थर पर पत्थर रखकर ही चुना गया है | पीले पत्थरो से बना होने के कारण  जब सूरज की रोशनी इस पर पड़ती है तो सोने जैसा चंपकता है , इसी कारण इसे सोनार गढ़ कहा जाता है | इस किले की छत लकड़ी की बनी है |  इतना पुराना होने के बावजूद इसकी...

हम्मीर रासो
इस महान ग्रंथ की रचना जोधाराज ने की थी, जोधाराज गौड़ ब्राह्मण के पुत्र थे। इन्होंने नीवगढ़ वर्तमान नीमराणा अलवर के राजा चन्द्रभान चौहान के अनुरोध पर हम्मीर रासौ नामक प्रंबधकाव्य संवत 1875 में लिखा। रणथम्भौर के राजा हम्मीर देव चौहान के विजय अभियानों से चन्द्रभान काफी प्रभावित थे। इस प्रंबधकाव्य में रणथम्भौर के प्रसिद्ध शासक हम्मीर देव का चरित्र वीरगाथा काल की छप्पय पद्धति पर वर्णन किया गया है। इस में बताया गया है कि हम्मीर देव चौहान ने शरणागत की रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। राजा हम्मीर ने कई बार दिल्ली शासक जलालुद्दीन खिलजी को पराजित किया और अलाउद्दीन खिलजी जैसे शासक के दाँत खट्टे कर दिए। हम्मीर रासौ हम्मीर की वीरगाथाओं के साथ ओजस्वी भाषा में बहुत अच्छा महाकाव्य है। इस महाकाव्य में बताया गया है कि मुहम्मदशाह मंगोल दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी की बेगम से बेहद प्यार करता था और उसका धन लूटकर के वो वहां से भाग गया था, जिसे अलाउद्दीन खिलजी पकड़ना चाहता था। हम्मीर रासौ में अलाउद्दीन खिलजी की बेगम का नाम चिमना बताया गया है। संवत 1902 में चन्द्रशेखर वाजपेयी ने हम्मीर हठ ग्रंथ लिखा था। इसमें भी इस घटनाक्रम का जिक्र किया गया है। हम्मीर रासौ के अनुसार रणथम्भौर साम्राज्य उज्जैन से लेकर मथुरा तक एवं मालवा (गुजरात) से लेकर अर्बुदाचल तक हम्मीर देव बढ़ा दिया था। हम्मीर रासौ से ज्ञात होता है कि हम्मीर देव उज्जैन को जीतकर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में शिव की पूजा की थी एवं अजमेर को जीतकर पुष्कर में शाही स्नान किया था। हम्मीर रासौ के कुछ पद्य उद्यत है :- [1] कब हठ करे अलावदी, रणतभँवर गढ़ आहि। कबै सेख सरनै रहै, बहुरयों महिम साहि।। सूर सोच मन में करौ, पदवी लहौ न फेरि। जो हठ छंडो राव तुम, उत न लजै अजमेरि।। सरन राखि सेख न तजौ, तजौ सीस गढ़ देस। रानी राव हम्मीर को, यह दीन्हौ उपदेस।।कब हठ करे अलावदी, रणतभँवर गढ़ आहि। कबै सेख सरनै रहै, बहुरयों महिम साहि।। सूर सोच मन में करौ, पदवी लहौ न फेरि। जो हठ छंडो राव तुम, उत न लजै अजमेरि।। सरन राखि सेख न तजौ, तजौ सीस गढ़ देस। रानी राव हम्मीर को, यह दीन्हौ उपदेस।। [2] राव धुँक गिरने लगत, तरू टूट और पाहर। रण देसा रो केहरी, रणतभँवर रो नाहर।। हठी बलि बल ना हट्यो, शरणागत को मान। बादल पीठ लावण चढ़्यो, राव भृकुटि तान।। गच्च गच्च भई खच्च खच्च, बजहिं राव तलवार। खिलजी सैना उठत गिरै, सुण राव की ललकार।।

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